Tuesday, February 16, 2016

                                                             मुस्कान
शाम के सात  बज रहे थे । सुमित कॉलेज से लौटते समय मेट्रो स्टेशन पर उतरा और घर जाने के लिए रिक्शे की तलाश करने लगा । तभी पीछे से एक रिक्शे वाले ने आवाज लगाई , कहां जाना है भैया ? सुमित ने पीछे मुड़कर देखा । एक 25 - 30 साल का दुबला-- पतला युवक वहां खड़ा था । उसने सिर पर गमछा था लपेटा हुआ था । सुमित ने पूछा  - जनकपुरी चलोगे ? 
रिक्शे  वाले ने कहा  - जी साहब 
सुमित  ने पूछा  - कितने पैसे?
रिक्शे  वाले ने कहा - जी, 40  रुपये ।
सुमित आगे बढ़ गया । तभी रिक्शा वाले ने फिर से आवाज़ लगाई- कितना दोगे  साहब ?
मेरा तो रोज का आना जाना है । तीस रुपये दूँगा ।
रिक्शे वाले ने पहले कुछ सोचा और फिर कह  उठा -  चलिए, ले चलता हूँ । सुमित रिक्शे में बैठ गया
 रिक्शेवाला रिक्शा चलाने लगा । सुमित भी दिन भर की बातों के बारे में सोचने लगा । उसकी  गली के थोड़ा पहले रिक्शा जैसे ही मुड़ने  लगा , किसी  की आवाज ने उसे चौंका दिया । सड़क पर  खड़ा व्यक्ति रिक्शे वाले से कह रहा था – अरे! तुम्हारे  रिक्शे का पहिया बाहर क्यों निकल रहा है? जरा ध्यान से चलाओ । रिक्शे  वाले ने एक तरफ झुक कर देखा । हां, उसके पहिए की के नट बोल्ट कहीं पीछे खुल गए और इसलिए रिक्शे का पहिया  बार- बार बाहर निकल रहा था । अब रिक्शेवाला धीरे-धीरे रिक्शा चलाने लगा । बार-बार उसकी निगाह वहीँ  पहुंच जाती । सुमित भी  घबरा गया था । वह भी  बार-बार पहिए को देख रहा था । कहीं  पहिया बाहर आ गया तो ! यह  सोचकर  वह बहुत डर गया था । घर आने ही वाला था । रिक्शावाला मायूस -सा  दिख  रहा था । सुमित ने पूछा  -क्या बात है भैया? रिक्शे  वाले ने कहा - क्या बताऊँ  भैया! अब इसकी मरम्मत में भी पैसे लग जाएंगे । वैसे ही दो जून का खाना  मुश्किल से जुटा पाता हूँ , ऊपर से इतना खर्च.! सुमित ने कहा - ठीक तो कराना ही पड़ेगा  भैय्या ।
बातों ही बातों में सुमित का  घर आ गया । सुमित ने कहा - बस भैय्या , रोक देना । वह रिक्शे से उतरा ओर अपने पर्स में से उसने पैसे निकालकर  रिक्शे वाले को दे दिए , उसके कंधे को थपथपाया । आँखों ही आँखों में धन्यवाद कहा और घर की ओर बढ़ गया । रिक्शे  वाले ने पैसे गिने । चालीस रुपये थे ।

बात तो तीस रुपये की हुई थी और ये तो चालीस रुपये हैं । उसने सोचा गलती से दे दिए हैं  । वह वापिस करने के लिए सुमित को  आवाज़ लगाने ही वाला था लेकिन खर्च के बारे में सोचकर  चुप रह गया । वह मन ही मन खुश हो गया कि चलो कुछ तो आराम हो गया । वह यह सोच कर मुस्कुरा उठा   सुमित के चेहरे पर संतोष की झलक थी , उसने  रिक्शे वाले का थोड़ा बोझ जो हल्का कर दिया था । उसके होठों पर मुस्कान थी । जाने पूरे दिन की थकावट कहाँ छूमंतर हो गयी थी !
उषा छाबड़ा
१६.२.१६
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