Thursday, October 22, 2015

       शुभ विजया
पावन पर्व दशहरा आया
विजयादशमी भी कहलाया।
राम ने दशानन को मारा
देवी ने महिषासुर संहारा।
 

 ' मैं ' तो कभी जीत न पाए
  मुझमें दुर्गा , राम समाये ।
  अपनी शक्ति हम पहचानें
  धृष्टों को हम कभी न बक्शें।
            उषा छाबड़ा



Monday, October 19, 2015

बचपन का भोलापन
दो छोटी बच्चियाँ  आज बहुत खुश थीं।   अपने विद्यालय की विशेष प्रार्थना सभा में  उन्हें नृत्य करना था।  दोनो बालिकाएँ  बड़ी सजी-धजी  मुश्किल से अपना घाघरा संभाले चल रही थीं।  चेहरे पर ऐसी खुशी थी कि पूछो मत. उन्होंने भारी घाघरा पहना हुआ था. तभी  एक का पैर  उसके घाघरे में उलझ गया  और वह गिर गई। दूसरी बच्ची ने उसे तुरंत संभाला, उठाया और पास ही सीढ़ियों  पर बिठा दिया।  पहली बच्ची गिरने के बाद डर गई थी। वह लगातार रोए जा रही थी। दूसरी बच्ची उसे कई तरह से  समझाने का प्रयत्न कर रही थी।  तभी  दूसरी लड़की ने कहा, " पता है, मैं भी एक बार  ऐसे ही गिर गई थी। " पहली बच्ची रोना भूलकर उसकी ओर देखने लगी।  दूसरी बच्ची ने कहा ,"ऐसे ही, मैं  भी पहले एक बार घाघरा  पहने हुए थी और मेरा पैर उसमें  उलझ गया था."  पहली बच्ची ने पूछा," फिर क्या हुआ ?" दूसरी बच्ची ने कहा ,"कुछ नहीं।  मैं  तो नहीं रोई।  मुझे समझ गई  कि घाघरा थोड़ा लंबा होता है इसलिए उसमें पैर फँस  जाने पर गिर जाते हैं " तब  तक पहली बच्ची अपने आंसू पोंछ  चुकी थी।  वह अपने पैरों  की ओर देखने लगी। दूसरी बच्ची ने कहा," अब जब भी घाघरा पहनो तो थोड़ा ऊंचा करके चलो, फिर कुछ नहीं होगा।" अब  पहली बच्ची  मुस्कुरा उठी. दोनों  ने  अपना घाघरा थोड़ा ऊंचा किया और फिर मुस्कुरा कर चल पड़ी  मानो  अभी कुछ हुआ ही ना हो। इसे कहते हैं  भोलापन। बचपन। इतनी जल्दी  सब  भूल जाते हैं।  हम बड़े अपनी बात को ,दूसरो की ग़लतियो को क्यों नहीं भूल पाते !

उषा छाबड़ा

20.10.15

सुनें कहानी मेरी आवाज़ में
रेडियो प्लेबैक इंडिया: उषा छाबड़ा की लघुकथा
बचपन का भोलापन
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Sunday, October 18, 2015

Wednesday, October 14, 2015

नवरात्र का सुन्दर समय है आया
लोगों को यह खूब है भाया।

नौ रूपों में पूजी वह जाती
देवी भरपूर सम्मान है पाती।

बड़ी लगन से सब पूजा करते
कई तो नित उपवास भी रखते।

घर पर सात्विक भोजन बनता
तन मन सबका इसमें रमता।


पूजें अपने  घर की लक्ष्मी
शक्ति की जो है प्रतिलिपि ।

भेदभाव उसे क्यों  सहना पड़ता
रात  दिन उसे क्यों घुटना पड़ता।


 सम्मान की है वह भी हकदार
 गले लगाएं उसे बारम्बार।

 सर्वगुणों से उसे करें संपन्न
 सब मिल कर हम करें यह प्रण।    

 उषा छाबड़ा     

Sunday, October 11, 2015



समाचार पत्र खोलते ही पहले पन्ने पर ऐसे कई समाचार दिखाई दे जाते हैं कि समझ नहीं आता इंसान को आखिर हो क्या गया है. सभी को उसी ईश्वर ने बनाया है सभी में एक ही लौ है.. फिर इतनी असहिष्णुता क्यों है ? मानवता का रास्ता भूल हम पथभ्रष्ट क्यों हो रहे हैं? इस वक्त आवश्यकता है सिर्फ अपने आपको स्थिर रखने की । संयम की।

इंसानियत की मशाल सब मिलकर उठाएं
जश्न मानवता का एक जुट हों मनाएं
चलो सब एक हो नया गीत गुनगुनाएं
प्रेम के संदेश को जन जन में फैलाएं.
..

Thursday, October 1, 2015




अहिंसा के  पुजारी को शत शत नमन.


यह तस्वीर सन २०१३ की है जब मैं अमरीका गई थी। यह गांधी जी की मोम से बनी मूर्ति है जो कि न्यूयॉर्क के टुसाद म्यूजियम में रखी है । तस्वीर खिंचाते वक्त जब मैंने गांधी जी की लाठी को पकड़ा तब मैंने कुछ अजीब सा महसूस किया. समझ नहीं आया पर यह अहसास जरूर हुआ कि इसमें कुछ प्रेरणा तो है. मन में प्रश्न उठा लोग क्यों और किस कदर इस महात्मा के पीछे चल पड़े थे जो लाठी हाथ में लिए पूरे देश का दौरा कर रहा था और इसका जवाब भी मुझे मिल गया था. अहिंसा के इस पुजारी को शत शत नमन.







मेरे बालगीतों की   प्यारी सी पुस्तकें  ताक धिना दिन 

















ताक धिना दिन 

मेरे बालगीतों की एक कविता का एक छोटा अंश सुनिए

TAK DHINA DHIN is a treasure-trove of fun.This poem is on balloons in which a child wants to travel to far off places.
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गुरु कौन
जो जीवन के अनजान सफर पर बच्चे को डर का अहसास न होने दे
उसे पता भी न चलने दे कि वह कब इतनी दूर निकल आया है
वह अपने अंदर छिपे गुणों को पहचान पाये 
उसमें इतना आत्मविश्वास भर दे कि वह किसी भी स्थिति में हिम्मत न हारे
जो ऊँचे ख्वाब देखने से न घबराये
जो उसे पूरा करने के लिए तत्पर रहे
जिसमें मानवता हो
वह गुरु है जो भावी पीढी को सुंदर बनाता है।
उषा छाबड़ा